क्षितिज के पार-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra
पर्वत और मैं
एक चिर मित्र रहे हैं, जबकि
मेरा जन्म मैदानी इलाके में हुआ
पर मुझे पहाड़ों से
बड़ा आत्मिक स्नेह रहा है।
सदा ही मुझे आकर्षित किया है
इनकी मूक वार्ता, सन्देश एवं
अपरिवर्तनीय गतिविधियों ने
कभी-कभी घाटियों में
नितांत एकांत नीरवता में
मैंने इनके आदर्श मौन
को देर तक सुना है।
प्रकृति के सर्वोत्तम उपहारों से युक्त
इनकी इन्द्रधनुषी मनोहरता को
अपलक निहारता हूँ तबतक
कि जबतक आँखों के द्वारा
हृदय तक इनका स्नेह-स्पर्श
घनीभूत होकर बह न जाये।
शरीर की धमनियों में
मनोरम दृश्यों की सुकुमारता को
आत्मसात कर लेना चाहता हूँ
मुग्ध होकर देखता हूँ इनके सौन्दर्य को
मनोरमता, निस्तब्धता के साथ व्यापकता
विस्तृत क्षेत्र, विशालता और निर्भीकता।
एकाकी होकर भी
गर्व से पृथ्वी पर तन कर खड़े
ये मेरे प्रेरणा श्रोत हैं
जो मुझे ललकारते हैं
चुनौतियों के साथ आगे बढ़ो
आओ देखो, शिखर पर आकर
क्षितिज की ओर
और क्षितिज के पार
क्या है ?????