कृतज्ञता-कविता-नरेश मेहता-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Naresh Mehta
धूप और गरमी में तपता
पसीने से लथपथ
वह उस वृक्ष की छाया तले पहुँचा।
छाया क्या थी।
जल था,
टिका दी तने से कुल्हाड़ी
और गमछा बिछा लेट गया
निश्चिंत।
नींद जब खुली
पहर ढल रहा था,
वह हड़बड़ाता उठा
और लगा पेड़ काटने।