काहे कउ पूजत पाहन कउ-गुरू गोबिन्द सिंह जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Gobind Singh Ji
काहे कउ पूजत पाहन कउ कछु पाहन मै परमेसुर नाही ॥
ताही को पूज प्रभू करि कै जिह पूजत ही अघ ओघ मिटाही ॥
आधि बिआधि के बंधन जेतक नाम के लेत सभै छुटि जाही ॥
ताही को धयानु प्रमान सदा इन फोकट धरम करे फलु नाही ॥२०॥
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