कान्ह परे बहुतायत में-कविता -घनानंद-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ghananand
कान्ह परे बहुतायत में,
इकलैन की वेदन जानौ कहा तुम?
हौ मनमोहन, मोहे कहूँ न,
बिथा बिमनैन की मानौ कहा तुम?
बौरे बियोगिन्ह आप सुजान ह्वै,
हाय कछू उर आनौ कहा तुम?
आरतिवंत पपीहन को
घनआनंद जू! पहिचानो कहा तुम?