post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
- 1 एक कमसिन हसीन लड़की का
- 2 कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
- 3 चंद लम्हों को तेरे आने से
- 4 तितली कोई बे-तरह भटक कर
- 5 दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
- 6 देखेंगे और जी में कुढ़ के रह जाएँगे
- 7 दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
- 8 दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
- 9 नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर
- 10 मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
- 11 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
क़ितयात -जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar part 4
एक कमसिन हसीन लड़की का
एक कमसिन हसीन लड़की का
इस तरह फ़िक्र से है मुखड़ा माँद
जैसे धुँदली कोहर चमेली पर
जैसे हल्की घटा के अंदर चाँद
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
बैठ जा मेरे रू-ब-रू मिरे पास
एक लम्हे को भूल जाने दे
अपने इक इक गुनाह का एहसास
चंद लम्हों को तेरे आने से
चंद लम्हों को तेरे आने से
तपिश-ए-दिल ने क्या सुकूँ पाया
धूप में गर्म कोहसारों पर
अब्र का जैसे दौड़ता साया
तितली कोई बे-तरह भटक कर
तितली कोई बे-तरह भटक कर
फिर फूल की सम्त उड़ रही है
हिर-फिर के मगर तिरी ही जानिब
इस दिल की निगाह मुड़ रही है
दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
दरवाज़े की खोलने उठी है ज़ंजीर
लौटा हूँ कहीं से जब भी पी कर किसी रात
हर बार अँधेरे में लगा है ऐसा
जैसे कोई शमा चल रही है मेरे साथ
देखेंगे और जी में कुढ़ के रह जाएँगे
देखेंगे और जी में कुढ़ के रह जाएँगे
लहराएँगे उनके दिल में कितने आँसू
आँचल की भरी खोंप छुपाने के लिये
साड़ी का उड़सती है कमर में पल्लू
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इश्क़ की जीत सुन सकेगी तू
दिल-ए-नाज़ुक से पहले पूछ तो ले
क्या मिरे गीत सुन सकेगी तू
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
आप से भी तो ख़ुद ख़फ़ा हूँ मैं
आज तक ये न खुल सका मुझ पर
बेवफ़ा हूँ कि बा-वफ़ा हूँ मैं
नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर
नाराज़ अगर हो तो बिगड़ लो मुझ पर
तुम चुप हो तो चैन कैसे आ सकता है
कहती है ये एहसास न छीनो मुझसे
मुझ पर भी कोई ज़ोर चला सकता है
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
दिल के दिल ही में रह गए अरमान
फिर भी इस बात का यक़ीं है मुझे
ना-मुकम्मल नहीं मिरा रूमान