post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
- 1 जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
- 2 जा रहा था हरम को मैं लेकिन
- 3 जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
- 4 ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
- 5 ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर
- 6 ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा
- 7 ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है
- 8 ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से
- 9 ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
- 10 तीरगी के घने हिजाबों में
- 11 तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
- 12 दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
- 13 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
क़ितआ -अब्दुल हमीद अदम-Abdul Hameed Adam-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita, Part-3,
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
ख़ुद-ब-ख़ुद कोई रुत नहीं फिरती
वक़्त की तंग-दिल सुराही से
मय की इक बूँद भी नहीं गिरती
जा रहा था हरम को मैं लेकिन
जा रहा था हरम को मैं लेकिन
रास्ते में ब-ख़ूबी-ए-तक़दीर
इक मक़ाम ऐसा आ गया जिस ने
डाल दी मेरे पाँव में ज़ंजीर
जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
उन सफ़ीनों को कौन खेता है
पूछती है ये क़िस्मत-ए-मज़दूर
या ख़ुदा रिज़्क़ कौन देता है
ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
ज़िंदगी इक फ़रेब-ए-पैहम है
मुस्कुरा कर फ़रेब खाता जा
रौशनी क़र्ज़ ले के साक़ी से
सर्द रातों को जगमगाता जा
ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर
ज़िंदगी की दराज़ पलकों पर
रास्ते का ग़ुबार छाया है
आब-ए-कौसर से आँख को धो ले
मै-कदा फिर क़रीब आया है
ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा
ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा
ज़ीस्त अपनी है ग़म पराए हैं
हम भी किन मुफ़लिसों की दुनिया में
क़र्ज़ की साँस लेने आए हैं
ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है
ज़ीस्त दामन छुड़ाए जाती है
मौत आँखें चुराए जाती है
थक के बैठा हूँ इक दोराहे पर
दोपहर सर पे आए जाती है
ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से
ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से
धन की ख़ैरात होती जाती है
साग़रों के बुलंद होने से
चाँदनी रात होती जाती है
ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
हल्क़ा-ए-दाम टूट जाता है
ज़िंदगी की गिरफ़्त में आ कर
मौत का जाम टूट जाता है
तीरगी के घने हिजाबों में
तीरगी के घने हिजाबों में
दूर के चाँद झिलमिलाते हैं
ज़िंदगी की उदास रातों में
बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं
तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
कहाँ हो पहले से तब्दील हो गए हो तुम
ख़ुदा करे मिरी आँखों से नूर छिन जाए
निगाह-ए-शौक़ में तहलील हो गए हो तुम
दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
कितनी उजड़ी हुई बहारों के
नाम कुंदा हैं आबगीनों पर
कितने डूबे हुए सितारों के