कहते-कहते थके-प्राण गीत-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
कहते-कहते थके कल्प, युग, वर्ष, मास, दिन,
पर जीवन की राम-कहानी अभी शेष है।
सौ-सौ बार उठा जुड़कर सपनों का मेला,
सौ-सौ बार गया मंज़िल तक प्राण अकेला,
बूँद-बूँद घन हुए हज़ारों बार नयन के,
ढहे करोडों बार महल चाँदी-कंचन के
पर है यह इन्सान कि फिर भी जिसके मन में
नीड़ बसाने की नादानी अभी शेष है!
कहते-कहते थके कल्प, युग, वर्ष, मास, दिन,
पर जीवन की राम-कहानी अभी शेष है।
छिन-छिन क्षीण हो रहा श्वास-कोष जीवन का,
छिन-छिन बढ़ता जाता है व्यापार मरण का,
हुए जा रहे टूक-टूक सब चाँद-सितारे,
बने जा रहे मरु दिन-दिन सागर-सरि सारे,
पर है यह आश्चर्य कि मिट्टी की आँखों में
एक बूँद आँसू का पानी अभी शेष है ।
कहते-कहते थके कल्प, युग, वर्ष, मास, दिन,
पर जीवन की राम-कहानी अभी शेष है।
‘आज’, आज का वर्तमान, कल का अतीत है,
और भविष्यत् सिर्फ भूत का मूक गीत है,
आता बनकर जन्म, मरण बन जाता हर पल,
बस चुटकी भर ख़ाक ज़िन्दगी-भर की हलचल,
लेकिन बुझी-बुझी प्राणों की हर धड़कन में,
किसी चोट की पीर पुरानी अभी शेष है।
कहते-कहते थके कल्प, युग, वर्ष, मास, दिन,
पर जीवन की राम-कहानी अभी शेष है।