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कविता-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Suryakant Tripathi Nirala Part 2
रचना की ऋजु बीन बनी तुम (गीत)
रचना की ऋजु बीन बनी तुम ।
ऋतु के नयन, नवीन बनी तुम ।
पल्लव के उर कुसुम-हार सित,
गन्ध, पवन-पावन विहार नित,
मिलित अन्त नभ नील विकल्पित,
एक-एक से तीन बनी तुम ।
रचना की ऋजु बीन बनी तुम ।
चपल बाल-क्रीड़ा अब अवसित,
यौवन के वन मदन नहीं श्रित,
प्रौढ़ प्राण से शाश्वत विगलित,
तुम जानो, कब लीन बनी तुम ।
रचना की ऋतु बीन बनी तुम ।
मेघ मल्लार (1)
अयि सजल-जलद-बदने !
सुख-सदने, सुख-सदने !
तुम हहर-हहरकर हर-हरकर
बहती हो सर-सर पहर-पहर
भरती हो जीवन अजर-अमर
सित हंसपंक्ति-रदने !
सहज सरोरुह के वन विकसित
मानसरोवर पर जब सुहसित,
सिन्धु-ब्रह्मपुत्रादि उल्लसित,
नदि-नद मद-मदने ।
शरत् पंकजलक्षणा
सखी री, खंजन वन आये;
सरसीरुह छाये !
हरसिंगार के हार पड़े हैं ;
शशि के मुख असि-नयन गड़े हैं ;
पहरे शाल रसाल खड़े हैं ;
तारक मुसकाये ।
धान पके, सोने की बाली ;
पानी भरी अगहनी आली;
छाई बाजरे की नभ लाली;
कास-कुसुम भाये ।
सौरभ के रभस बसो, जीवन (गीत)
सौरभ के रभस बसो, जीवन !
वारिद की बूंद खसो, जीवन !
केशर के शर स्वप्निल उपशम
वेधो ऊषा के प्रस्फुट क्रम;
सोओ मलयानिल के विभ्रम,
दल के कर कमल कसो, जीवन !
भौरों के मदगंजित गुंजन
गाओ वन-वन उपवन-उपवन
छाओ नभ सुमन-सुमन कण-कण
भरकर तट सुघट गसो, जीवन !
क्यों निर्जन में हो (गीत)
क्यों निर्जन में हो?
नवजीवन, अविकच तन ;
भ्रमितानन से ओ !
नयन तुम्हारे नये नये,
छोर छोड़कर चले गये,
किसे खोजते ये उनए ?
एक बार देखो !
अब न किसी के तुम होगे ?
साथ किसे अब तुम दोगे ?
हाथ किसी का न गहोगे ?
बात भी हमें दो !
वन्दना
वन्दन करूँ चरण,
जननि, हो भाव की
भूमि पर अवतरण !
विमल पलकें खुलें
मोह के पटल से,
कमल जैसे नयन
तुलें ज्योतिर्हसे,
देश दश दिशावधि
कटे कारावरण !
स्तव के स्तवक, वर्ण-
रेणु के, शरण के,
स्रोत पर बह चलें
जन्म के, मरण के;
पृथा पर अमृत का
क्षार से हो क्षरण !