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कविता-भारतेंदु हरिश्चंद्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bharatendu Harishchandra
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ,
तासों सदा व्याकुल बिकल अकुलायँगी।
प्यारे ‘हरिचंद जूं’ की बीती जानि औध, प्रान
चाहते चले पै ये तो संग ना समायँगी।
देख्यो एक बारहू न नैन भरि तोहिं यातैं,
जौन जौन लोक जैहैं तहाँ पछतायँगी।
बिना प्रान प्यारे भए दरस तुम्हारे, हाय!
मरेहू पै आंखे ये खुली ही रहि जायँगी।
बँसुरिआ मेरे बैर परी
बँसुरिआ मेरे बैर परी।
छिनहूँ रहन देति नहिं घर में, मेरी बुद्धि हरी।
बेनु-बंस की यह प्रभुताई बिधि हर सुमति छरी।
’हरीचंद’ मोहन बस कीनो, बिरहिन ताप करी॥
सखी री ठाढ़े नंदकिसोर
सखी री ठाढ़े नंदकिसोर।
वृंदाबन में मेहा बरसत, निसि बीती भयो भोर।
नील बसन हरि-तन राजत हैं, पीत स्वामिनी मोर।
’हरीचंद’ बलि-बलि ब्रज-नारी, सब ब्रजजन-मनचोर॥
हरि-सिर बाँकी बिराजै
हरि-सिर बाँकी बिराजै।
बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै।
बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै।
’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी।
दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी।
नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई।
नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि माई।
प्राननाथ के मुख की बानी, करहिं अमृत रस-पान।
‘हरिचंद’ हमको सौउ दुरलभ, यह बिधि गति की आन॥