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- 1 जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
- 2 अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी
- 3 है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
- 4 नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली
- 5 वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली
- 6 सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै
- 7 रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
- 8 मैं अपनौ मनभावन लीनों
- 9 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
कविता -बिहारी-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita- Bihari part 1
जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।
अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी
अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी।
घहराय कै कारी घटा उनई, इतनेई में गागरि सीस धरी।
रपटयो पग, घाट चढयो न गयो, कवि मंडन ह्वै कै बिहाल गिरी।
चिर जीवहु नंद के बारो, अरी, गहि बाँह गरीब ने ठाढ़ी करी।
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ
कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ
देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।
नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली
नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली,
लटुन सी साँवरी रजनि सरसान दै,
नूपुर उतारन किंकनी खोल डारनि दै
धारन दै भूषन कपूर पान खान दै,
सरस सिंगार कै बिहारी लालै बसि करौ
बसि न करि सकै ज्यौं आन प्रिय प्रान दै,
तौ लगि तू धीर धर एतौ मेरौ कह्यौ करि
चलिहौं कन्हैया पै जुन्हैया नैंकु जानि दै।।
वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली
वंस बड़ौ बड़ी संगति पाइ, बड़ाई बड़ी खरी यौ जग झेली।
साँप फुकारन सीस रसारनु है सबसे जिय ऊपर खेली।
बाइक एक ही बार उजारि कै मारि सबै ब्रज नारि नवेली।
मोहन संग तू लै जसुरी, बसु (री) बँसुरी ब्रज आइ अकेली।।
सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै
सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै।
मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू ,सु कहयौ कछु ये सुति साँभलिए।
भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए।
रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ।
प्रेम छकी रसबस अलसाड़ी, जाणे कमलकी पाँखड़ियाँ॥
सुंदर रूप लुभाई गति मति, हो गईं ज्यूँ मधु माँखड़ियाँ।
रसिक बिहारी वारी प्यारी, कौन बसी निस काँखड़ियाँ॥
मैं अपनौ मनभावन लीनों
मैं अपनौ मनभावन लीनों॥
इन लोगनको कहा कीनों मन दै मोल लियो री सजनी।
रत्न अमोलक नंददुलारो नवल लाल रंग भीनों॥
कहा भयो सबके मुख मोरे मैं पायो पीव प्रवीनों।
रसिक बिहारी प्यारो प्रीतम सिर बिधना लिख दीनों॥