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कविताएँ-गुरू गोबिन्द सिंह जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Gobind Singh Ji 5
बंग के बंगाली
बंग के बंगाली फिरहंग के फिरंगावाली दिली के दिलवाली तेरी आगिआ मै चलत हैं ॥
रोह के रुहेले माघ देस के मघेले बीर बंग सी बुंदेले पाप पुंज को मलत हैं ॥
गोखा गुन गावै चीन मचीन के सीस नयावै ति्बती धिआइ दोख देह को दलत हैं ॥
जिनै तोहि धिआइओ तिनै पूरन प्रताप पाइओ सरब धन धाम फल फूल सों फलत हैं ॥३॥२५६॥
देव देवतान कौ सुरेस दानवान कौ
देव देवतान कौ सुरेस दानवान कौ महेस गंग धान कौ अभेस कहीअतु हैं ॥
रंग मैं रंगीन राग रूप मैं प्रबीन और काहू पै न दीन साध अधीन कहीअतु हैं ॥
पाईऐ न पार तेज पुंज मैं अपार सरब बिदिआ के उदार हैं अपार कहीअतु हैं ॥
हाथी की पुकार पल पाछै पहुंचत ताहि चीटी की चिंघार पहिले ही सुनीअतु हैं ॥४॥२५६॥
केते इंद्र दुआर केते
केते इंद्र दुआर केते ब्रहमा मुखचार केते क्रिसन अवतार केते राम कहीअतु हैं ॥
केते ससि रासी केते सूरज प्रकासी केते मुंडीआ उदासी जोग दुआर कहीअतु हैं ॥
केते महादीन केते बिआस से प्रबीन केते कुमेर कुलीन केते जछ कहीअतु हैं ॥
करते हैं बिचार पै न पूरन को पावै पार ताही ते अपार निराधार लहीअतु हैं ॥५॥२५७॥
पूरन अवतार निराधार है
पूरन अवतार निराधार है न पारावार पाईऐ न पार पै अपार कै बखानीऐ ॥
अद्वै अबिनासी परम पूरन प्रकासी महा रूप हूं के रासी हैं अनासी कै कै मानीऐ ॥
जंत्र हूं न जात जा की बाप हूं न माइ ता की पूरन प्रभा की सु छटा कै अनुमानीऐ ॥
तेज हूं को तंत्र हैं कि राजसी को जंत्र हैं कि मोहनी को मंत्र हैं निजंत्र कै कै जानीऐ ॥६॥२५८॥
तेज हूं को तरु हैं
तेज हूं को तरु हैं कि राजसी को सरु हैं कि सु्धता को घरु हैं कि सि्धता की सार हैं ॥
कामना की खान हैं कि साधना की सान हैं बिरकतता की बान हैं कि बु्धि को उदार हैं ॥
सुंदर सरूप हैं कि भूपन को भूप हैं कि रूप हूं को रूप हैं कुमति को प्रहारु हैं ॥
दीनन को दाता हैं गनीमन को गारक हैं साधन को ्रछक हैं गुनन को पहारु हैं ॥७॥२५९॥