कल की रात गिरी थी शबनम-बूढ़े पहाड़ों पर-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
कल की रात गिरी थी शबनम
हौले-हौले कलियों के बन्द होंठों पर
बरसी थी शबनम
कल की रात…
फूलों के रुख़सारों से रुख़सार मिलाकर
नीली रात की चुनरी के साये में शबनम
परियों के अफ़सानों के पर खोल रही थी
कल की रात गिरी थी शबनम
दिल की मद्धम-मद्धम हलचल में
दो रूहें तैर रही थीं
जैसे अपने नाज़ुक पंखों पर
आकाश को तोल रही हों
कल की रात गिरी थी शबनम
कल की रात बड़ी उजली थी
कल की रात तेरे संग गुज़री
कल की रात गिरी थी शबनम…