कल्पना-पंकज पुण्डीर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pankaj Pundir
जब भी कभी मैं सोचता हूँ,
देखता हूँ स्वयं को सोचते हुए ॥
उल्लास भरे मन से, स्वप्न भरी आँखों से।
विश्वास भरे हृदय से, उत्साह भरे हाथों से ॥
जब भी कभी मैं सोचता हूँ ।
देखता हूँ स्वयं को सोचते हुए ॥
तुम आज, साक्षात स्वयं की कल्पना हो ॥
उत्तर हो उन प्रश्नों के, जो मन पृष्ठ पर अंकित हैं ।
विवरण हो उस परिभाषा का, जो ज्ञानवृक्ष से मुखरित हैं ।
ताप हो अविरत दिनकर का, जो हृदयव्योम में पुलकित है ॥
निश्चित है, तुम आज, साक्षात स्वयं की कल्पना हो ॥
संगीत के सप्तस्वर तुम हो, प्रेम के वंशीधर तुम हो ।
स्वः भावों का मान तुम हो, संकल्पों का अभिमान तुम हो ।
सीमाओं का ज्ञान तुम हो, प्रज्ञाओं का विज्ञान तुम हो ।
निश्चित है, तुम आज, साक्षात स्वयं की कल्पना हो ॥