कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी-ग़ज़लें-बृज नारायण चकबस्त-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Brij Narayan Chakbast
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
पर अब उरूज वो इल्म-ओ-कमाल-ओ-फ़न में नहीं
रगों में ख़ूँ है वही दिल वही जिगर है वही
वही ज़बाँ है मगर वो असर सुख़न में नहीं
वही है बज़्म वही शम्अ’ है वही फ़ानूस
फ़िदा-ए-बज़्म वो परवाने अंजुमन में नहीं
वही हवा वही कोयल वही पपीहा है
वही चमन है प वो बाग़बाँ चमन में नहीं
ग़ुरूर-ए-जेहल ने हिन्दोस्ताँ को लूट लिया
ब-जुज़ निफ़ाक़ के अब ख़ाक भी वतन में नहीं