कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखाफिर कबीर -मुनव्वर राना -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Munnawar Rana
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा
यहाँ तो जो भी है आबे-रवाँका आशिक़ है
किसी ने ख़ुश्क नदी की तरफ़ नहीं देखा
वो जिसके वास्ते परदेस जा रहा हूँ मैं
बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा
न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहरा
चले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा
बिछड़ते वक़्त बहुत मुतमुइन थे हम दोनों
किसी ने मुड़ के किसी की तरफ़ नहीं देखा
रविश बुज़ुर्गों की शामिल है मेरी घुट्टी में
ज़रूरतन भी सख़ीकी तरफ़ नहीं देखा