कफ़न है आसमान-बादर बरस गयो-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
मत करो प्रिय! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
हर पखेरू का यहाँ है नीड़ मरघट पर
है बँधी हर एक नैया, मृत्यु के तट पर
खुद बखुद चलती हुई ये देह अर्थी है
प्राण है प्यासा पथिक संसार-पनघट पर
किसलिए फिर प्यास का अपमान?
जी रहा है प्यास पी-२ कर जहान।
मत करो प्रिय! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
भूमि से, नभ से, नरक से, स्वर्ग से भी दूर
हो कहीं इन्सान, पर है मौत से मजबूर
धूर सब कुछ, इस मरण की राजधानी में
सिर्फ़ अक्षय है, किसी की प्रीति का सिन्दूर
किसलिए फिर प्यार का अपमान?
प्यार है तो ज़िन्दगी हरदम जवान।
मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
रंक-राजा, मूर्ख-पंडित, रूपवान-कुरूप
साँझ बनती है सभी की ज़िन्दगी की धूप
आखिरी सब की यहाँ पर, है चिता की सेज
धूल ही श्रृंगार अन्तिम, अन्त-रूप अनूप
किसलिए फिर धूल का अपमान?
धूल हम-तुम, धूल है सब की समान।
मत करो प्रिय ! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
एक भी देखा न ऐसा फ़ूल इस जग में
जो नहीं पथ पर चुभा हो, शूल बन पग में
सब यहीं छूटा पिया घर, जब चली डोली
एक आँसू ही रहा बस, साथ दृग-मग में
किसलिए फिर अश्रु का अपमान?
अश्रु जीवन में अमृत से भी महान।
मत करो प्रिय! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।
प्राण! जीवन क्या क्षणिक बस साँस का व्यापार
देह की दुकान जिस पर काल का अधिकार
रात को होगा सभी जब लेन-देन समाप्त
तब स्वयं उठ जाएगा यह रूप का बाज़ार
किसलिए फिर रूप का अभिमान?
फ़ूल के शव पर खड़ा है बागबान।
मत करो प्रिय! रूप का अभिमान
कब्र है धरती, कफ़न है आसमान।