कड़ी धूप माथे पर पसीना-कविता -दीपक सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Deepak Singh
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।
हे शहजादों क्या नजर पड़ी,
कभी गांवो के गलियारों में।
कठिन परिश्रम कौन दिखाए,
हाथ लगे रंगदारों में।
क्या देखा है आंखों के आंसू,
और पसीने से भीगा हलबीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।
दोपहर तक भूखा रहे,
फिर सादा भोजन खाते हुए।
इसकी सीधी सरल जिंदगी,
फिर भी बेवकूफ बनाते हुए।
किस्मत पर लड़ता है ये,
क्या इसके लिए कोई अधीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तकदीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।
अपने बच्चों को पढ़ाने को,
बैंक से कर्ज उठाते हुए।
लड़ते लड़ते खेतों से,
फिर मौत को गले लगाते हुए,
किसका आसरा कौन सुने,
क्या मरने से बदले जंजीर।
कड़ी धूप माथे पर पसीना,
किसानों की कैसी तस्वीर।
अन्नदाता कहते हैं इसको,
देखो लाचारी इसकी तस्वीर।।