ओढ़नी प्रेम की-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra
आकर्षण से सम्मोहित यह जीवन
मान्यताओं के समक्ष असहाय है
जीर्ण-शीर्ण हो चुकी सामाजिक रीतियाँ,
रूढ़ियों में जकड़ी परम्पराएँ।
भोली आस्थाओं के बंधन
धर्म की कारागर से सम्पादित आचरण
विश्वास का थोथा आवरण
सृष्टि के नियम में दम तोड़ती भावनाएँ
अंधविश्वास में सड़ते तर्क
बढ़ते हुए विकास के पग पर बेड़ियाँ हैं
क्षणभंगुर इस विश्व की परिकल्पना में
ज्ञान का अहंकार समृद्धि की धड़कन
सुन पाने में अक्षम हैं।
ये सभी सार्वभौम सत्य की स्वीकार्यता
के मार्ग में बाधा मात्र है
जब तुम सामान्य ही न हो सकोगे
तो नैसर्गिक जीवन कैसे बह पायेगा ?
अच्छा होगा
कृत्रिमता की सलाखों से बहार निकालो
तभी प्राकृतिक प्रेम का अंकुरण संभव हो सकेगा
निरपेक्ष सत्य की अद्भुत शक्ति के समक्ष
सभी दीवारें ध्वस्त हो जाएँगी
और उस नए उजास में जीवन
अपनी समग्रता के साथ खिलेगा।
सभी कुछ प्रेम का ही परिणाम है
अगर प्रेम ही न रहा तो कुछ भी न रहेगा
जैसे असली सोना तप कर और निखर जाता है
वैसे ही सबकुछ नष्ट हो जाने पर भी
प्रेम की चमक बढ़ती ही जाएगी।
अपने प्रेम को पहचानो
इस समस्त जीवन को ढकने के लिए
प्रेम की एक ओढ़नी ही पर्याप्त है