ऐसा एक दीप जलाऊं-राजकुमार जैन राजन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajkumar Jain Rajan
हर बरस की तरह
स्मृतियों को स्पर्श करती
चुपके -चुपके
आएगी दिवाली की रात
देने अंधकार को फिर मात
इच्छा है इस दिवाली
जलाऊं एक ऐसा दीप
जिसकी बाती मिटे नहीं
जिसका तेल कभी रीते नहीं
और वह अखंड दीप
प्रकाशित करता रहे
दिल की धरती को
मौन से गहराते
नीरव अंधियारे में
हमारे भविष्य का उजाला है
स्वार्थ, असहिष्णुता से
लकवाग्रस्त हुए
अपाहिज समाज में
हर चेहरे के पीछे
एक शैतानी चेहरा है
हर एक ‘राम’ के भीतर
छिपा है एक ‘रावण’
जिनसे दरक रही है
इंसानियत
अंधेरे का हाथ थामकर
फिर एक दीप जलाऊं
जिसका प्रकाश करे
प्रेम का ऐसा अंकुरण
प्रस्फुटित हो जिससे
और यह दुनिया
फिर से प्यारी लगने लगे
जिजीविषा फिर कहीं
हार नही माने
फिर किसी स्त्री की सिसकियाँ
विडम्बना न बन जाये
नीरव अंधकार में
बहे रस की धार
ऐसा एक दीप जलाऊं