एजाज़ है ये तेरी परेशाँ-नज़री का-ग़ज़लें -अहमद नदीम क़ासमी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmad Nadeem Qasmi,
एजाज़ है ये तेरी परेशाँ-नज़री का
इल्ज़ाम न धर इश्क़ पे शोरीदा-सरी का
इस वक़्त मिरे कल्बा-ए-ग़म में तिरा आना
भटका हुआ झोंका है नसीम-ए-सहरी का
तुझ से तिरे कूचे का पता पूछ रहा हूँ
इस वक़्त ये आलम है मिरी बे-ख़बरी का
ये फ़र्श तिरे रक़्स से जो गूँज रहा है
है अर्श-ए-मोअल्ला मिरी आली-नज़री का
कोहरे में तड़पते हुए ऐ सुब्ह के तारे
एहसान है शाइर पे तिरी चारागरी का
उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है
मुझे वो जो इस दश्त के उस पार से लाया है
मुझे कितने आईनों में इक अक्स दिखाया है
मुझे ज़िंदगी ने जो अकेला कभी पाया है
मुझे तू मिरा कुफ़्र भी है
तू मिरा ईमान भी है तू ने लूटा है मुझे तू ने बसाया है
मुझे मैं तुझे याद भी करता हूँ तो जल उठता हूँ
तू ने किस दर्द के सहरा में गँवाया है
मुझे तू वो मोती कि समुंदर में भी शो’ला-ज़न था
मैं वो आँसू कि सर-ए-ख़ाक गिराया है
मुझे इतनी ख़ामोश है शब लोग डरे जाते हैं
और मैं सोचता हूँ किस ने बुलाया है
मुझे मेरी पहचान तो मुश्किल थी
मगर यारों ने ज़ख़्म अपने जो कुरेदे हैं तो पाया है
मुझे वाइज़-ए-शहर के नारों से तो क्या खुलती आँख
ख़ुद मिरे ख़्वाब की हैबत ने जगाया है
मुझे ऐ ख़ुदा अब तिरे फ़िरदौस पे मेरा हक़ है
तू ने इस दौर के दोज़ख़ में जलाया है मुझे