एक लम्स-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
एक लम्स
हल्का सुबुक
और फिर लम्स-ए-तवील
दूर उफ़क़ के नीले पानी में उतर जाते हैं तारों के हुजूम
और थम जाते हैं सय्यारों की गर्दिश के क़दम
ख़त्म हो जाता है जैसे वक़्त का लम्बा सफ़र
तैरती रहती है इक़ ग़ुंचे के होंटों पे कहीं
एक बस निथरी हुई शबनम की बूँद
तेरे होंटों का बस इक लम्स-ए-तावील
तेरी बाँहों की बस एक सन्दली गिरह