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एकांत-संगीत -हरिवंशराय बच्चन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harivansh Rai Bachchan Part 8
जीवन का विष बोल उठा है
जीवन का विष बोल उठा है!
मूँद जिसे रक्खा मधुघट से,
मधुबाला के श्यामल पट से,
आज विकल, विह्वल सपनों के अंचल को वह खोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!
बाहर का श्रृंगार हटाकर
रत्नाभूषण, रंजित अंबर,
तन में जहाँ-जहाँ पीड़ा थी कवि का हाथ टटोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!
जीवन का कटु सत्य कहाँ है,
यहाँ नहीं तो और कहाँ है?
और सबूत यही है इससे कवि का मानस ड़ोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! -कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
जीवन भूल का इतिहास
जीवन भूल का इतिहास!
ठीक ही पथ को समझकर,
मैं रहा चलता उमर भर,
किंतु पग-पग पर बिछा था भूल का छल पाश!
जीवन भूल का इतिहास!
काटतीं भूलें प्रतिक्षण,
कह उन्हें हल्का करूँ मन,-
कर गया पर शीघ्रता में शत्रु पर विश्वास!
जीवन भूल का इतिहास!
भूल क्यों अपनी कही थी,
भूल क्या यह भी नहीं थी,
अब सहो विश्वासघाती विश्व का उपहास!
जीवन भूल का इतिहास!
नभ में वेदना की लहर
नभ में वेदना की लहर!
मर भले जाएँ दुखी जन,
अमर उनका आर्त क्रंदन;
क्यों गगन विक्षुब्ध, विह्वल, विकल आठों पहर?
नभ में वेदना की लहर!
वेदना से ज्वलित उडुगण,
गीतमय, गतिमय समीरण,
उठ, बरस, मिटते सजल घन;
वेदना होती न तो यह सॄष्टि जाती ठहर।
नभ में वेदना की लहर!
बन गिरेगा शीत जलकण,
कर उठेगा मधुर गुंजन,
ज्योतिमय होगा किरण बन,
कभी कवि-उर का कुपित, कटु और काला जहर?
नभ में वेदना की लहर!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!
स्वार्थ का जिसमें न था कण,
ध्येय था जिसका समर्पण,
जिस जगह ऐसे प्रणय का था हुआ अपमान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!
भाग्य दुर्जम और दुर्गम
हो कठोर, कराल, निर्मम,
जिस जगह मानव प्रयासों पर हुआ बलवान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!
पात्र सुखियों की खुशी का,
व्यंग का अथवा हँसी का,
जिस जगह समझा गया दुखिया हृदय का गान!
छोड़ मैं आया वहाँ मुस्कान!
जीवन शाप या वरदान
जीवन शाप या वरदान?
सुप्त को तुमने जगाया,
मौन को मुखरित बनाया,
करुन क्रंदन को बताया क्यों मधुरतम गान?
जीवन शाप या वरदान?
सजग फिर से सुप्त होगा,
गीत फिर से गुप्त होगा,
मध्य में अवसाद का ही क्यों किया सम्मान?
जीवन शाप या वरदान?
पूर्ण भी जीवन करोगे,
हर्ष से क्षण-क्षण भरोगे,
तो न कर दोगे उसे क्या एक दिन बलिदान?
जीवन शाप या वरदान?
जीवन में शेष विषाद रहा
जीवन में शेष विषाद रहा!
कुछ टूटे सपनों की बस्ती,
मिटने वाली यह भी हस्ती,
अवसाद बसा जिस खँडहर में, क्या उसमें ही उन्माद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
यह खँडहर ही था रंगमहल,
जिसमें थी मादक चहल-पहल,
लगता है यह खँडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
जीवन में थे सुख के दिन भी,
जीवन में थे दुख के दिन भी,
पर, हाय हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुख याद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
अग्नि देश से आता हूँ मैं
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
झुलस गया तन, झुलस गया मन,
झुलस गया कवि-कोमल जीवन,
किंतु अग्नि-वीणा पर अपने दग्ध कंठ से गाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
स्वर्ण शुद्ध कर लाया जग में,
उसे लुटाता आया मग में,
दीनों का मैं वेश किए, पर दीन नहीं हूँ, दाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
तुमने अपने कर फैलाए,
लेकिन देर बड़ी कर आए,
कंचन तो लुट चुका, पथिक, अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं!
अग्नि देश से आता हूँ मैं!
सुनकर होगा अचरज भारी
सुनकर होगा अचरज भारी!
दूब नहीं जमती पत्थर पर,
देख चुकी इसको दुनिया भर,
कठिन सत्य पर लगा रहा हूँ सपनों की फुलवारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!
गूँज मिटेगा क्षण भर कण में,
गायन मेरा, निश्चय मन में,
फिर भी गायक ही बनने की कठिन साधना सारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!
कौन देवता? नहीं जानता,
कुछ फल होगा, नहीं मानता,
बलि के योग्य बनूँ, इसकी मैं करता हूँ तैयारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!
जीवन खोजता आधार
जीवन खोजता आधार!
हाय, भीतर खोखला है,
बस मुलम्मे की कला है,
इसी कुंदन के ड़ले का नाम जग में प्यार!
जीवन खोजता आधार!
बूँद आँसू की गलाती,
आह छोटी-सी उड़ाती,
नींद-वंचित नेत्र को क्या स्वप्न का संसार!
जीवन खोजता आधार!
विश्व में वह एक ही है,
अन्य समता में नहीं हैं,
मूल्य से मिलता नहीं, वह मृत्यु का उपहार!
जीवन खोजता आधार!
हा, मुझे जीना न आया
हा, मुझे जीना न आया!
नेत्र जलमय, रक्त-रंजित,
मुख विकृत, अधरोष्ठ कंपित
हो उठे तब गरल पीकर भी गरल पीना न आया!
हा, मुझे जीना न आया!
वेदना से नेह जोड़ा,
विश्व में पीटा ढिंढोरा,
प्यार तो उसने किया है, प्यार को जिसने छिपाया!
हा, मुझे जीना न आया!
संग मैं पाकर किसी का
कर सका अभिनय हँसी का,
पर अकेले बैठकर मैं मुसकरा अब तक न पाया!
हा, मुझे जीना न आया!