उस रात-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
उस रात बहुत सन्नाटा था !
उस रात बहुत खामोशी थी !!
साया था कोई ना सरगोशी
आहट थी ना जुम्बिश थी कोई !!
आँख देर तलक उस रात मगर
बस इक मकान की दूसरी मंजिल पर
इक रोशन खिड़की और इक चाँद फलक पर
इक दूजे को टिकटिकी बांधे तकते रहे
रात ,चाँद और मैं तीनो ही बंजारे हैं ……..
तेरी नम पलकों में शाम किया करते हैं
कुछ ऐसी एहतियात से निकला है चाँद फिर
जैसे अँधेरी रात में खिड़की पे आओ तुम !
क्या चाँद और ज़मीन में भी कोई खिंचाव है
रात ,चाँद और मैं मिलते हैं तो अक्सर हम
तेरे लहज़े में बात किया करते हैं !!
सितारे चाँद की कश्ती में रात लाती है
सहर में आने से पहले बिक भी जाते हैं !
बहुत ही अच्छा है व्यापार इन दिनों शब का
बस इक पानी की आवाज़ लपलपाती है
की घात छोड़ के माझी तमामा जा भी चुके हैं ….
चलो ना चाँद की कश्ती में झील पार करें
रात चाँद और मैं अक्सर ठंडी झीलों को
डूब कर ठंडे पानी में पार किया करते हैं !!