उसे क्या नाम दूँ-त्रिकाल संध्या-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra
उसे क्या नाम दूँ जिसे मैंने
अपनी बुद्धि के अँधेरे में देखा नहीं
छुआ
जिसने मेरे छूने का जवाब
छूने से दिया
और जिसने मेरी चुप्पी पर
अपनी चुप्पी की मोहर लगाई
जिसने मेरी बुद्धि के अँधेरे पर
मेरे मन की अँधेरे की
तहों पर तहें जमाईं
और फिर जगा दिया मुझे
ऐसे एक दिन में
जिसमें आकाश तारों से भी
भरा था
वातावरण जिसमें
दूब की तरह हरा था
और कोमल!