उम्र-क़ैद…-ग़ज़लें-मोहनजीत कुकरेजा -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Mohanjeet Kukreja Ghazals
आवाज़ आज भी देता हूँ, तुम्हें सुनायी देती नहीं
मिलने की अब कोई उम्मीद दिखायी देती नहीं !
जीवन बिता डाला पूरा, जिसको हासिल करने में
मंज़िल तो अब दिखती है, राह सुझायी देती नहीं !
ज़ख़्मी जिस्म-ओ-ज़मीर की गुहार सुनाई देती है
रूह भी लहू-लुहान है पर कभी दुहायी देती नहीं !
गर फ़ितूर हो सहने का, दुःख अपनाना पड़ता है
इतना मज़ा कोई भी तकलीफ़ परायी देती नहीं !
उम्र की इस क़ैद में, ऐसे ही दर्द को जीना होगा
जब तक मौत ख़ुद आकर हमें रिहायी देती नहीं !