उपरान्त वार्ता -आवाज़ों के घेरे -दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
हिल उठा अचानक संयम का वट-नृक्ष
अस्फुट शब्दों की हवा तुम्हारे अधरों से क्या बही
सब जड़ें उभर आयीं…
पहले भी मैंने
तुमको समझाया था
याद करो-
ये बिरवा है
ढह जायेगा
लहरों के आगे इस बिरवे की क्या बिसात !
आँधियाँ संभाले हुए दिशाओं-सा दिल
रहे अविचलित
मुस्कानों को झेले जाये नित
इस योग्य नहीं ।
जीवन का पहरेदार सजग : संयम,
लेकिन कब तक… ?
हर क्षण पर कोई मुहर नहीं होती !
यह जीवन खाली था
इसको भरने वाली
आकांक्षाएं पनिहारिन चढ़ आयीं
कैसे समझाता या उन्हें मना करता 1
पर तुमको तो
पहले भी समझाया था याद करो
मैं बहुत विवश हूँ
कोई लक्ष्मण-रेखा नहीं यहाँ,
दूरी रखने के लिए कहाँ जाऊँ
तुम हो न जहाँ ?
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