उजड़ी-उजड़ी हुई हर आस लगे-ग़ज़लें(तन्हा सफ़र की रात)-जाँ निसार अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaan Nisar Akhtar
उजड़ी-उजड़ी हुई हर आस लगे
ज़िन्दगी राम का बनबास लगे
तू कि बहती हुई नदिया के समान
तुझको देखूँ तो मुझे प्यास लगे
फिर भी छूना उसे आसान नहीं
इतनी दूरी पे भी, जो पास लगे
वक़्त साया-सा कोई छोड़ गया
ये जो इक दर्द का एहसास लगे
एक इक लहर किसी युग की कथा
मुझको गंगा कोई इतिहास लगे
शे’र-ओ-नग़्मे से ये वहशत तेरी
खुद तिरी रूह का इफ़्लास लगे