इशक़ के ख़ूब तार जुड़ते हैं-ग़ज़लें-ख़याल लद्दाखी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Khayal Ladakhi
इशक़ के ख़ूब तार जुड़ते हैं
एक दिल से हज़ार जुड़ते हैं
संग लेकर कोई कोई ख़न्जर
मुझसे यूँ बेशुमार जुड़ते हैं
मौसमें रक़स करने लगती हैं
जब ख़ज़ां से बहार जुड़ते हैं
चार आँखों की आड में देखो
दो दिल ए बेक़रार जुड़ते हैं
राबते उम्र भर के हैं गोया
मुझसे ग़म बार बार जुड़ते हैं
एक उम्र ए कलान है जिस में
अहद ए नासाज़गार जुड़ते हैं
राबते दरमयां रहें अब भी
मुझ से कुछ सोगवार जुड़ते हैं
आप ही से ख़याल जाने क्यूं
दौर ए नापायदार जुड़ते हैं