इन रिन्दों की खुशफहमी को हवा दे दे-तारिक़ अज़ीम तनहा-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Tariq Azeem Tanha
इन रिन्दों की खुशफहमी को हवा दे दे,
इन्हें चाहे शराब न दे मगर शीशा दे दे।
हमे आदत है तेरी निग़ाहों से पीने की,
सब शराबियों को उठाके मैख़ाना दे दे!
गर तुझसे मुहब्बत करके गुनाह किया,
दूर ना जा मुझसे, मुझे कोई सज़ा दे दे!
कल आये थे दयारे-इश्क़ के सिपाही,
मज़ा आ जाए कोई नाम तुम्हारा दे दे!
अब तो इक आदत है अलम सहने की,
कहीं से आ ऐ ! बेदर्द मुझे दर्द नया दे दे!
तेरे बाद ज़िंदगी मेरी ‘तनहा’ हो गयी,
लाकर मुहब्बत के वो पल दुबारा दे दे!
अमन के लिए तो हम हकदार हैं यहाँ,
वतन-ए-अमन को नाम हमारा दे दे!