इक साया मिरा मसीहा था-लेकिन -जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia
इक साया मिरा मसीहा था
कौन जाने वो कौन था क्या था
वो फ़क़त सहन तक ही आती थी
मैं भी हुजरे से कम निकलता था
तुझ को भूला नहीं वो शख़्स कि जो
तेरी बाँहों में भी अकेला था
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
बात तो दिल-शिकन है पर यारो
अक़्ल सच्ची थी इश्क़ झूटा था
अपने मेआ’र तक न पहुँचा मैं
मुझ को ख़ुद पर बड़ा भरोसा था
जिस्म की साफ़-गोई के बा-वस्फ़
रूह ने कितना झूट बोला था