इंक़लाब एक ख़्वाब है सो है-गोया-जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia
इंक़लाब एक ख़्वाब है सो है
दिल की दुनिया ख़राब है सो है
रहियो तो यूँही महव-ए-आराइश
बाहर इक इज़्तिराब है सो है
तर है दश्त उस के अक्स-ए-मंज़र से
और ख़ुद वो सराब है सो है
जो भी दश्त-ए-तलब का है पस-ए-रू
वही ज़र्रीं-रिकाब है सो है
शैख़ साहब लिए फिरें तेग़ा
बरहमन फ़त्ह-याब है सौ है
दहर आशोब है सवालों का
और ख़ुदा ला-जवाब है सो है
इस शब-ए-तीरा-ए-हमेशा में
रौशनी एक ख़्वाब है सो है