आसमान-प्रदीप सिंह-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pradeep Singh
बहुत पहले
तुम
अनंत थे
फिर हुए कुछ
छोटे
लगभग मेरे शहर जितने
फिर कुछ और
छोटे हुए
मेरे मोहल्ले जितने
फिर सिमटे
और रह गए
मेरे आँगन जितने
और
अब रह गए हो
उतने ही
जितना दिखता है
टुकड़ा रौशनदान से
पर तुम तो
अनंत हो न आसमान।