आज मेरे कंठ में-दर्द दिया है-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
डालकर जादू मधुर कोई नयन का
छीनकर सब ले गया उल्लास मन का,
वेदना का है घिरा ऐसा घना तम
बुझ गया पहले समय से दीप दिन का
याद की ऐसी लहर पर बह रहा हूँ
कूल का भी आज आकर्षण नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
खो गये सुधि-स्वर किसी के गीत-वन में
जा छिपे लोचन किसी के रूप-घन में
खोजता फिरता बसेरा पंथ भूला
कल्पना पंछी किसी के नभ-नयन में
आज अपनी ही पकड़ से मैं परे हूँ
आज अपने पास अपनापन नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
मृत्यु-जैसी मूकता की ओढ़ चादर
रात की सारी उदासी प्राण में भर
आँज आँखों में तिमिर की कालिमा सब
देखता लेटा पड़ा मैं शून्य अम्बर
नाचते हैं पुतलियों पर अश्रु प्रतिपल
किन्तु पलकों में पुलक कम्पन नहीं है
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
तीव्र इतनी प्यास प्राणों में जगी है
हर सितारे की नज़र मुझ पर लगी है,
प्राण-नभ के चाँद की पर चाँदनी सब
दूर निद्रा के नगर में जा ठगी है,
चेतना जड़ हो गई है आज ऐसी
प्राण है, पर प्राण में धड़कन नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
ओ गगन के चाँद ! तू क्यों मुसकराता?
रास किरणों का धरा पर क्यों रचाता?
क्या नहीं मालूम तुझको देखकर यूँ
है किसी को चाँद कोई याद आता,
मान जा, ओ मान जा, चंचल हठीले!
अनाज मेरी आग पर बन्धन नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
देख मन करता विरह का यह अंधेरा,
हो कभी जग में न इस निशि का सबेरा,
बस पड़ा यूँ ही रहूँ मैं अन्त दिन तक,
बन्द हो यह निठुर सुधियों का न फेरा,
क्या करूँ पर मैं विवश, निष्ठुर समय का
आज मेरे हाथ में दामन नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!
कल सुबह होगी जगेगा विश्व-उपवन,
कोक-कोकी का मिलन होगा मगन-मन,
खोल सीपी से नयन तुम भी उठोगे
सृष्टि को देकर नया जीवन, नये क्षण,
पर तुम्हें मालूम क्या मेरी निशा को
मृत्यु से कम प्रात का दर्शन नहीं है!
आज मेरे कंठ में गायन नहीं है!