अर्चना-छोटा सा आकाश-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
कौन कहता है कि धरा पर स्वर्ग नहीं है
क्या इंद्र ने तुम्हे कभी देखा है
सारा देवलोक बादलों की ओट से झांक रहा है
कैसे ब्रम्हा ने तुम्हे रचा है
तुम कल्पना से भी परे
सृष्टि की मनोरम रचना हो
हरसिंगार सी सुन्दर, कुमकुम जैसी आकर्षक
दहकते दिये सी तुम यौवन की अर्चना हो
तुम पूजा की थाल में जैसे सजी
मृदुल पंखुड़ियों की हो रंगोली
मन मंदिर में बसी लक्ष्मी
तुम ही उत्सव हो जैसे वसंत की होली