अमीरे-शहर को तलवार करने वाला हूँफिर कबीर -मुनव्वर राना -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Munnawar Rana
अमीरे-शहर को तलवार करने वाला हूँ
मैं जी-हुज़ूरी से इन्कार करने वाला हूँ
कहो अँधेरे से दामन समेट ले अपना
मैं जुगनुओं को अलमदारकरने वाला हूँ
तुम अपने शहर के हालात जान सकते हो
मैं अपने-आपको अख़बार करने वाला हूँ
मैं चाहता था कि छूटे न साथ भाई का
मगर वो समझा कि मैं वार करने वाला हूँ
बदन का कोई भी हिस्सा ख़रीद सकते हो
मैं अपने जिस्म को बाज़ार करने वाला हूँ
तुम अपनी आँखों से सुनना मेरे कहानी को
लबे-ख़ामोशसे इज़्हार करने वाला हूँ
हमारी राह में हाएल कोई नहीं होगा
तू एक दरिया है मैं पार करने वाला हूँ
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