अमर प्रेमी-अंतर्यात्रा-परंतप मिश्र-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Parantap Mishra
बह रही है आज भी सरिता
उन्ही कठोर प्रस्तरों के हृदय से
प्रचण्ड वेग से धरा का आलिंगन करती
संगीत के महोत्सव में
नाद पर नर्तन करती धाराएँ
गाती हैं मनमोहक अनसुने गीत
अपने किनारों के कन्धों पर डाले बाँह
उषा की रश्मियों से खेलती हुईं
बहती हुई पवन को शीतल करती
चराचर को अमृत से तृप्त करती
चल पड़ती है वीरानों में
अल्हड़ यौवना नख-शिख शृंगार किये
उस अमर प्रेमी की तलाश में
यात्रा का पड़ाव नहीं
बढ़ती ही जाती है बिना रुके
जैसे विरहन का प्रेम खो गया हो
पर मार्ग कितना भी कठिन हो
पाकर रहेगी प्रिय सागर को
सर्वस्व निछावर कर होगी विलीन
सदा के लिए
प्रेमी का कर प्रेम अमर