अभिनंदन-छोटा सा आकाश-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
वह भी कैसा मोड़ था जहाँ
तुम मुझे अनायास ही मिल गई
आज तुम्हे पाकर लगा जैसे
रात में ही सुबह की दिशा मिल गई
क्या तुमने कभी सोचा था
हम भी छू पायेंगे आकाश
आज हम जहाँ पहुँच सके है
वह तुम्हारा ही है विश्वास
कितनी छोटी थी तुम, जब मिली मुझसे
पर कितनी बड़ी थी हमारी इच्छा
कोमल सी तुम और वह लम्बी यात्रा
बूढ़े रास्तों पर चल पड़े, जैसे कोई बच्चा
बत्तीस बरस तुम्हारे हाथों में हाथ डाल
हम सपनों से भी आगे निकल आये
पर तुमसा नहीं कोई रूप-रस-रति भरा
जो जनमों में कही मिल पाए
हम मिले तो ऐसा सुख मिला
जैसे जलते हुए सूरज में गहरी छाया
तुम लक्ष्मी, ज्ञान की सम्राज्ञी हो
तन-मन से ढंकी जैसे मधु भरी माया
तुम इस जीवन की आरती
अधरों का मदिर बंधन
स्वर्ग बन उतरी हो एकाकी पलों में
तुम्हारा सदैव है अनंत अभिनन्दन