द्वितीय सर्ग-अकल्पनीय की कल्पना-शार्दूल-विक्रीडित-पारिजात-अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh,
द्वितीय सर्ग-अकल्पनीय की कल्पना-शार्दूल-विक्रीडित-पारिजात-अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध',-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh, सोचे व्यापकता-विभूति प्रतिभा है पार पाती नहीं। होती है चकिता विलोक विभुता विज्ञान की विज्ञता। लोकातीत अचिन्तनीय पथ में है चूकती चेतना। कोई व्यक्ति अकल्पनीय विभु की कैसे क कल्पना॥1॥ आती है सफरी समूह-उर में क्या सिंधु की सिंधुता? क्या ज्ञाता खगवृन्द है गगन के विस्तार-व्यापार का? पाती है न पिपीलका अवनि की सर्वाङग्ता का पता। कैसे मानव तो महामहिम…